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Saturday, July 16, 2016

एक था राजा...एक थी रानी

एक था राजा...एक थी रानी


                                         
                                           
                               दोनों मिले...शुरू हुई कहानी                          


एक दिन राजा ने रानी से कहा...... 

ओ साथी मेरे.. हाथों में तेरे.. 
हाथों की अब गिरहा दी ऐसे 
की टूटे ये कभी ना..
चल ना कहीं सपनों के गाँव रे
छूटे ना फिर भी धरती से पाऊं रे
आग और पानी से फिर लिख वो वादे सारे
साथ ही में रोए हंसे, संग धुप छाओं रे
आग और पानी से फिर लिख वो वादे सारे
साथ ही में रोए हंसे, संग धुप छाओं रे 
हम जो बिखरे कभी
तुमसे जो हम उधड़े कहीं
बुन ले ना फिर से हर धागा
हम तो अधूरे यहां
तुम भी मगर पूरे कहाँ
करले अधूरेपन को हम आधा
जो अभी हमारा हो मीठा हो या खारा हो
आओ ना कर ले हम सब साझा 
ओ साथी मेरे.. हाथों में तेरे
हाथों की अब गिरहा दी ऐसे
की टूटे ये कभी ना...... 
(फिल्म तनू वेड्स मनु के गीत की पंक्तियां)
कहानी जारी रहेगी......धीरज (धैर्य)


Thursday, July 7, 2016

Coming Back to what was Started...

Well...this has been long. It's been a year and coming back to what was put on hold or should I say forgotten feels good. In this span of time have collected so much to share. So many things that made it all worth. It's good to be back and back with a bang.

Be it the words that have been penned down or be it the things that have been through lenses, everything depicts the story of their own...

Sharing makes one even more compelling to look for things that's not meant to be kept in folds. Something are meant to be shared.



Friday, August 8, 2014

नमो कि नेपाल यात्रा



भारत सरकार अपने पड़ोसी देशों से बढ़ती दूरियों की खाई को पाटने के लिए लगातार अग्रसर है...जिसका पहला प्रमाण मोदी ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में ही दिखा दिया था...अपने प्रचार के दौरान मोदी ने सबका साथ-सबका विकास का मंत्र दिया...जो उनकी भविष्य की योजनाओं को दर्शाता भी है....प्रधानमंत्री अपने इस मंत्र से सार्क देशों के साथ भारत के रिश्ते को नए रास्ते पर ले जाना चाहते हैं....यही वजह है कि शपथग्रहण के बाद से ही मोदी सरकार का पड़ोसी देशों की तरफ विशेष लगाव दिखता है....माना यही जा रहा है कि मोदी सार्क देशों अपने रिश्ते मजबूत कर विश्वमंच पर भारत की छवि एक विश्व नेता के तौर पर दिखाना चाहते हैं... जी.. सबका साथ सबका विकास... मोदी का ये नारा सीधा संदेश देता है कि सरकार जो भी काम करेगी उसमें सबको साथ लेकर सबके विकास का उद्देश्य ही होगा...यही नारा अब विदेश नीति का भी मूल मंत्र बन चुका है....शपथ ग्रहण में सार्क देशों के नेताओं की मौजूदगी इसी नारे और मंत्र को आगे बढ़ाने की शुरुआत थी...प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्रिक्स सम्मेलन में जब लंबे वक्त से लटके ब्रिक्स बैंक के प्रस्ताव को अमली जामा पहनाने में अहम भूमिका निभाई तो उसके पीछे भी सबका साथ-सबका विकास मंत्र ही था...यही नहीं इस बार के ब्रिक्स सम्मेलन में भारतीय प्रधानमंत्री एक सीइओ की तरह काम करते नजर आए और पूरे सम्मेलन में आकर्षण का केंद्र बने रहे...मोदी की इसी कार्यशैली से अब अमेरिका भी सबका साथ सबका विकास नारे की तारीफ करता नहीं थक रहा...मोदी की विदेश नीति कि शुरुआत भूटान से हुई जिसका अगला पड़ाव नेपाल बना....जी हां वही नेपाल जिसके साथ बीते 17 बरस से रिश्ते ठंडे पड़े थे...बीते 17 सालों में किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री की ये पहली नेपाल यात्रा रही...नेपाल पहुंचने पर मोदी का स्वागत ठीक वैसा ही हुआ जैसा कि अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा का स्वागत भारत आने पर हुआ था...नेपाल की राजधानी काठमांडू में जिस तरह हर हर मोदी और घर घर मोदी के नारे सुनाई दिए तो ऐसा प्रतीत हुआ जैसे मोदी नेपाल में चुनाव लड़ रहे हों...दिलचस्प बात ये है कि काठमांडू की ये भीड़ गुजरात या बनारस की नहीं थी और न ही बीजेपी की प्रायोजित भीड़ बल्कि ये नेपाल की जनता का मोदी के लिए प्रेम दिखलाती है...ऐसा स्वागत..ऐसा सम्मान…वाकई अद्भुत दृश्य था... बड़े दिल वाले मोदी ने भी नेपाल की जनता का दिल नहीं तोड़ा और सुरक्षा की चारदीवारी लांघते हुए मोदी ने ठमांडू की भीड़ से हाथ मिलाए...मोदी ने नेपाल पहुंच कर भारत नेपाल रिश्तों की तुलना हिमालय और गंगा की प्राचीनता से की तो भगवान बुद्ध...राजा जनक और श्री पशुपतिनाथ मंदिर के जरिए दोनों देशों के अटूट जुड़ाव का भी जिक्र किया...मोदी उन गोरखाओं का नाम लेना भी नहीं भूले जिन्होनें भारत के लिए कई जंग लड़ीं... मोदी ने जिस तरह गुजरात के सोमनाथ...बनारस के बाबा विश्वनाथ और काठमांडू के पशुपतिनाथ मंदिर के संबधों को जोड़ा दोनो देश के नागरिकों को भी ये महसूस हुआ कि भारत और नेपाल के बीच सीमाओं के बंधन नहीं होने चाहिए...बल्कि ऐसे पुलों का निर्माण किया जाना चाहिए...जो दोनों देशों के सबंधों को और प्रगाण बना सके... मोदी की खासियत है कि वो भावनाओं को भावुकता में परोसने में माहिर हैं....ऐसे में ये जरुरी हो जाता है कि नेपाल को नए सिरे से भरोसा दिलाया जाए....कि भारत आर्थिक...कारोबारी...सामाजिक...शैक्षणिक और विकास के विभिन्न आधारों पर उसके साथ रहा है और आगे आने वाले समय में भी उसके साथ खड़ा रहेगा...इस विषय पर पनबिजली का मुद्दा सबसे महत्त्वपूर्ण है...जिस पर मोदी की टिप्पणी थी कि इससे दोनों देशों का अंधेरा दूर हो सकेगा...लेकिन बिजली खरीद समझौते पर नेपाली कैबिनेट हस्ताक्षर करने को फिलहाल तैयार नहीं हुई...माना जा रहा है कि आगामी 45 दिनों के भीतर दोनों देशों के बीच सहमति बनेगी और समझौते पर हस्ताक्षर होंगे...नेपाल की संसद को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि यदि नेपाल अपनी पनबिजली क्षमताओं का ही इस्तेमाल कर ले तो समृद्ध देशों की जमात में खड़ा हो सकता है...वैसे मोदी की इस यात्रा के दौरान 5600 मेगावाट की पंचेश्वर बहुउद्देश्यीय परियोजना पर करार हुआ...मोदी ने अपने भाषण में ये भी साफ किया कि भारत नेपाल से बिजली खरीदना चाहता है...अगर दोनों देशों के बीच बिजली खरीद पर रजामंदी हो जाए तो भारत में बिजली संकट समाप्त हो सकता है...इस तरह हमारा अंधेरा छंटेगा और नेपाल आर्थिक तौर पर मजबूत होगा...तो उसका अंधेरा दूर होगा...मोदी नेपाल से सबंध और भी मीठे बनाना चाहते है उसकी वजह चाइना भी है...बीते सालों में नेपाल में चीन की सक्रियता बढ़ी है और नेपाल ने भी सकारात्मक संकेत दिए हैं...2014 में ही नेपाल के प्रधानमंत्री दो बार चीन का दौरा कर चुके हैं...और करीब 90000 चीनी पर्यटक अब नेपाल में जाते हैं...यदि पर्यटन के लिहाज से भगवान बुद्ध की जन्मस्थली लुंबिनी को भारत में बनारस...सांची और बौद्ध गया आदि से जोड़ा जाता है..तो दोनों देशों के रिश्ते आध्यात्मिक और वैचारिक स्तर पर भी बेहतर बन सकते हैं...मोदी ने नेपाली संसद के सामने एक एचआईटी मंत्र भी दिया है...एच से हाई-वे और टी से ट्रांसमिशन के काम तो नेपाल में भारत पहले से ही कर रहा है.. मोदी ने उसमें सूचना को भी जोड़ने की कोशिश की है....चूंकि अब दोनों देशों के बीच शीर्ष राजनीतिक स्तर पर फैसले हो रहे हैं... लिहाजा हिट के जरिए भी नेपाल का पुनरोद्धार हो सकता है...बहरहाल अब प्रधानमंत्री मोदी की विदेश नीति साफ होने लगी है...भूटान और नेपाल के बाद वह म्यांमार और जापान जा सकते हैं...मोदी सबसे पहले पड़ोस और एशिया की कूटनीति को भारत के अनुकूल बनाना चाहते हैं...नेपाल में तो उन्होंने सत्ता के अलावा विपक्ष के नेताओं का भी दिल जीत लिया..लेकिन अब देखना है कि विश्व विख्यात भविष्यवक्ता नास्त्रेदमस कि भविष्यवाणी कितनी सही हो पाती है...कि मोदी एक बार फिर से भारत को विश्व गुरु बनाने में कामयाब हो पाते है कि नहीं....बहरहाल उन्होने अपने इस मिशन की शुरुआत तो कर ही दी है....।।।

Thursday, March 27, 2014

आदरणीय सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की ये कविता मेरे दिल के बेहद करीब है...इस लिए इसे अपने ब्लाग पर पोस्ट कर रहा हूँ....आप भी जरुर पढ़ें...

तुम्हारे साथ रहकर अक्सर मुझे ऐसा महसूस हुआ है कि दिशाएँ पास आ गयी हैं, हर रास्ता छोटा हो गया है, दुनिया सिमटकर एक आँगन-सी बन गयी है जो खचाखच भरा है, कहीं भी एकान्त नहीं न बाहर, न भीतर। हर चीज़ का आकार घट गया है, पेड़ इतने छोटे हो गये हैं कि मैं उनके शीश पर हाथ रख आशीष दे सकता हूँ, आकाश छाती से टकराता है, मैं जब चाहूँ बादलों में मुँह छिपा सकता हूँ। तुम्हारे साथ रहकर अक्सर मुझे महसूस हुआ है कि हर बात का एक मतलब होता है, यहाँ तक की घास के हिलने का भी, हवा का खिड़की से आने का, और धूप का दीवार पर चढ़कर चले जाने का। तुम्हारे साथ रहकर अक्सर मुझे लगा है कि हम असमर्थताओं से नहीं सम्भावनाओं से घिरे हैं, हर दिवार में द्वार बन सकता है और हर द्वार से पूरा का पूरा पहाड़ गुज़र सकता है। शक्ति अगर सीमित है तो हर चीज़ अशक्त भी है, भुजाएँ अगर छोटी हैं, तो सागर भी सिमटा हुआ है, सामर्थ्य केवल इच्छा का दूसरा नाम है, जीवन और मृत्यु के बीच जो भूमि है वह नियति की नहीं मेरी है। - सर्वेश्वरदयाल सकसेना

Saturday, March 15, 2014

सियासी लॉलीपाप...


जब कोई प्रदेश सरकार कोई बड़ी योजना की घोषणा करती है तो जनता को उम्मीद जगती है कि शायद इस योजना से उनका भी कुछ भला हो जाए...लेकिन विडंबना देखिए की ये योजनाएं सिर्फ कागजों में ही सिमट कर रह जाती हैं..इन योजनाओं का अस्तित्व बस तभी तक सीमित रहता है जब तक हमारे देश के सफेदपोश नेता जनता को वोटरों में तब्दील नहीं कर लेते...वोटिंग खत्म होते ही नेता दुनिया के किस कोने में जन सेवा करने में जुट जाते हैं इसका पता करना थोड़ा मुश्किल हो जाता है...ऐसी ही समस्या से उत्तर प्रदेश बार बार जूझता आ रहा है..2012 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई...तब लोगों में जबरदस्त खुशी देखने को मिली ...लोगों को लगा कि बार बार गठबंधन सरकार होने के कारण प्रदेश का विकास नही हो पाता जैसा होना चाहिए..लेकिन लोगों को समझने में ज्यादा देर नहीं लगी कि ये सरकार कुछ ज्यादा ही विकास करेगी ...जी हां विकास तो हुआ लेकिन उनका जिन्होने जनता को ठगा...2012 विधान सभा चुनाव से पहले सपा ने जनता से 10वीं पास करने वाले स्कूली बच्चों को मुफ़्त टैबलेट बांटने का फ़ैसला लिया था...लेकिन ये टैबलेट तो अभी तक जनता को नहीं मिल पाए है...इसी बीच सपा सरकार ने एक और योजना की घोषणा कर दी...इस बार योजना और बड़ी थी..क़रीब 15 लाख मुफ़्त लैपटॉप बांटने का दावा किया गया लेकिन फिर वही ढाक के तीन पात..टैबलेट तो नहीं बंटे लेकिन अखिलेश सरकार ने क़रीब 15 लाख मुफ़्त लैपटॉप बांटने का दावा ज़रूर कर दिया...इस महत्वाकांक्षी योजना पर लगभग पांच हज़ार करोड़ रूपए लागत की बात बार बार कही जाती रही है....लेकिन शुरुआत से ही योजना के उद्देश्य और उसके नतीजों पर सवाल खड़े होते रहे हैं..सरकार लगातार दावा करती रही है कि इस योजना से प्रदेश के युवाओं में टेक्नॉलजी में रुची और भी ज्यादा बढ़ेगी और ग़रीब बच्चों का भला होगा...समझने वाली बात है कि उन बच्चों का लैपटाप और टैब से कैसे भला हो सकता है जिन बच्चों के पास खाने के लिए एक वक्त की रोटी नहीं है...जहां बिजली का जाना नहीं बल्कि उसका आना खबर बन जाती है...तमाम और दिक्कतें भी इन्हे झेलनी पड़ती है...लेकिन इनके पास लौपटाप नाम का खिलौना जरुर है...बड़ा सवाल उठता है कि उत्तर प्रदेश के कितने इलाक़ों में लैपटॉप चलाने के लिए बिजली है...अब ऐसे में यही कहा जा सकता है कि इन सफेदपोश नेताओं की सत्ता की सियासत चलती रहे...और ये करोड़ों की लैपटॉप योजना को बच्चों के हाथ में झुनझुना थमाने वाली बात को सही साबित करते रहें...

Wednesday, February 26, 2014

अटल तो अटल हैं...

राजनीति की दुनिया में अकसर नेता गद्दी मिलने के बाद अंधे हो जाते हैं...ताकत मिलने के बाद नेताओं को अच्छे-बुरे में कोई फर्क नजर नहीं आता....राजनीति की राह में रंगीनियां अकसर हावी होती नजर आती हैं लेकिन इस देश के महान राजनीतिक इतिहास के कुछ ऐसे पन्ने भी मिलते हैं जो राजनीति को सिर्फ राजनीति तक ही सीमित रखते हैं....आज जहां हर नेता के स्कैंडल और घोटाले सामने आ रहे हैं वहीं कुछ नेता ऐसे भी हैं जिनका राजनीतिक और सामाजिक जीवन बेहद पाक-साफ रहा है.....ऐसी ही शख्सियत हैं अटल बिहारी वाजपेई.......अटल ने भारतीय राजनीति को नई दिशा दी....उन्होने न केवल भारत में बल्कि विदेशो में भी देश का नाम रौशन किया....अटल देश के श्रेष्ठ राजनेताओं में से एक होने के साथ साथ कुशल वक्ता और महान राजनेता के रुप में जाने जाते हैं...राष्ट्रिय क्षितिज पर साफ छवि के साथ साथ अजातशत्रु कहे जाने वाले अटल...एक व्यक्ति का नाम नहीं है....बल्कि राष्ट्रीय विचार धारा का नाम है... परिवार में जन्में अटल बिहारी ने देश के प्रधानमंत्री पद तक का जो सफर तय किया उसे आज भी आदर्श माना जाता है....अटल ने पत्रकारिता से अपने कॅरियर की शुरूआत की...उन्होने राम मनोहर लोहिया आंदोलन में अहम भूमिका निभा कर खुद को राजनीति से जोड़ा....राजनीति में एक बार आने के बाद अटल ने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा....16 मई 1996 का वो दिन था जब पहली बार अटल ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली...लेकिन कुछ दिनों में ही उनकी ये सरकार गिर गई......शायद देश को ये मंजूर नहीं था...देश में दोबारा आम चुनाव हुए और अटल ने फिर से सरकार बनाई जो की पूरे पांच साल का कार्यकाल खत्म करके ही रुकी......अटल जी एक सच्चे इंसान और लोकप्रिय नेता रहे हैं....वो वसुधैव कुटुम्बकम की भावना से परिपूर्ण सत्यम शिवम सुंदरम के पक्षधर रहे हैं....अटल जी का सक्रिय राजनीति में पदार्पण 1955 में हुआ...जबकि देश प्रेम की अलख को जगाने के लिए कई बार जेल भी गए....सादा जीवन और उच्च विचारों वाले अटल जी अपनी सत्यनिष्ठा और नैतिकता की वजह से अपने विरोधियों में भी लोकप्रिय रहे हैं..अटल को 1994 में सर्वश्रेष्ठ सांसद और 1998 में सबसे ईमानदार व्यक्ति से सम्मानित किया गया....1992 में पद्मिवभूषण जैसी बड़ी उपाधी से अलंकृत अटल जी को 1992 में ही हिन्दी गौरव से भी सम्मानित किया गया...अटल जी ही पहले नेता थे जिन्होने यूएन में हिन्दी भाषण देकर पूरे राष्ट्र को गौरवन्वि किया और राष्ट्रीय भाषा का मान बढ़ाया ...यही कारण हैं की उन्हे आजाद भारत की राजनीति का ब्रांड कहा जाता है......

Thursday, November 1, 2012

कहते है बदलाव प्रकृति का नियम है शायद यही कारण है कि समय और समाज में आ रहे बदलावों के साथ-साथ हमारे त्योहारों में भी बदलाव देखा जा सकता है। पति की लंबी उम्र के लिए किया जाने वाला व्रत करवा चैथ अब लोक परम्परा ही नहीं रह गया है, बल्कि इसमें आज की युवा पीढ़ी ने नए रंग भरे हैं। आज की मार्डन महिला करवा चैथ का व्रत तो रखती है ही साथं उनके पति परमेश्वर भी व्रत रखने लगे हैं। दिनभर उपवास के बाद शाम को अठराह-बीस साल की युवती से लेकर पचहत्तर साल की महिला नई दुल्हन की तरह सजती-संवरती है। इस दिन सजने सवरने कि प्रकिया पंद्रह ...बीस दिन पहले से ही शुरू हो जाती है गौरतलब है कि महिलाओं की सजने सवरने की इस लालसा का बाजार को भी जबरदस्त फायदा होता है। ब्यूटी पार्लर अलग-अलग किस्म के पैकेज की घोषणा करते हैं। महिलाएं न सिर्फ इस दिन श्रृंगार कराने आती हैं, बल्कि प्री-मेकअप भी कराया जा रहा है। करवा चैथ पर मेहंदी का बाजार लाखों के पार बैठता है। सुबह से लेकर शाम तक महिलाएं अपने हाथों में मेहंदी लगवाने के लिए कतार में खड़ी रहती हैं। बदलते दौर में पति का भी व्रत रखना परंपरा का विस्तार है। इस पर्व को अब सफल और खुशहाल दाम्पत्य जीवन की कामना के लिए तो किया ही जाता है साथ ही साथ ये नए जमाने का ट्रेंड भी बन चुका है। इसीलिए करवा चैथ अब केवल लोक-परंपरा नहीं रह गया है पौराणिकता के साथ-साथ इसमें आधुनिकता का प्रवेश हो चुका है और अब यह त्योहार भावनाओं पर केंद्रित हो गया है। हमारे समाज की यही खासियत है कि हम परंपराओं में नवीनता का समावेश लगातार करते रहते हैं। कभी करवा चैथ पत्नी के, पति के लिए समर्पण का प्रतीक हुआ करता था, लेकिन आज यह पति-पत्नी के बीच के सामंजस्य और रिश्ते की खुशबू में महक रहा है। आधुनिक होते दौर में हमने अपनी परंपरा तो नहीं छोड़ी है, अब इसमें ज्यादा संवेदनशीलता, समर्पण और प्रेम की अभिव्यक्ति दिखाई देती है। दोनों के बीच अहसास का घेरा मजबूत होता है, जो रिश्तों को सुरक्षित करता है। इस नई जेनरेशन की महिलाएं भी अपने सुहाग के प्रति पहले जितनी ही प्रतिबद्ध हैं, लेकिन उनके सुहाग यानी पतिदेव की भावनाओं में जबरदस्त परिवर्तन आया है। महानगर में कई जोड़े ऐसे हैं, जहां
पति भी अपनी पत्नी के साथ करवा चैथ का व्रत करते हैं और उसके बाद रात को किसी रेस्तरां में रोमांटिक डिनर के लिए जाते हैं। सुहाग की कुशल कामना का पर्व करवा चैथ तो आज भी कायम है, लेकिन बदले स्वरूप के साथ। यानी एक वर्ग ऐसा भी है, जो करवा चैथ पर करवा, परंपरागत पकवान और सात भाइयों की बहन की कहानी से दूर होते हुए भी उसे बस भावनाओं के साथ मना रहा है।