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Thursday, November 1, 2012

कहते है बदलाव प्रकृति का नियम है शायद यही कारण है कि समय और समाज में आ रहे बदलावों के साथ-साथ हमारे त्योहारों में भी बदलाव देखा जा सकता है। पति की लंबी उम्र के लिए किया जाने वाला व्रत करवा चैथ अब लोक परम्परा ही नहीं रह गया है, बल्कि इसमें आज की युवा पीढ़ी ने नए रंग भरे हैं। आज की मार्डन महिला करवा चैथ का व्रत तो रखती है ही साथं उनके पति परमेश्वर भी व्रत रखने लगे हैं। दिनभर उपवास के बाद शाम को अठराह-बीस साल की युवती से लेकर पचहत्तर साल की महिला नई दुल्हन की तरह सजती-संवरती है। इस दिन सजने सवरने कि प्रकिया पंद्रह ...बीस दिन पहले से ही शुरू हो जाती है गौरतलब है कि महिलाओं की सजने सवरने की इस लालसा का बाजार को भी जबरदस्त फायदा होता है। ब्यूटी पार्लर अलग-अलग किस्म के पैकेज की घोषणा करते हैं। महिलाएं न सिर्फ इस दिन श्रृंगार कराने आती हैं, बल्कि प्री-मेकअप भी कराया जा रहा है। करवा चैथ पर मेहंदी का बाजार लाखों के पार बैठता है। सुबह से लेकर शाम तक महिलाएं अपने हाथों में मेहंदी लगवाने के लिए कतार में खड़ी रहती हैं। बदलते दौर में पति का भी व्रत रखना परंपरा का विस्तार है। इस पर्व को अब सफल और खुशहाल दाम्पत्य जीवन की कामना के लिए तो किया ही जाता है साथ ही साथ ये नए जमाने का ट्रेंड भी बन चुका है। इसीलिए करवा चैथ अब केवल लोक-परंपरा नहीं रह गया है पौराणिकता के साथ-साथ इसमें आधुनिकता का प्रवेश हो चुका है और अब यह त्योहार भावनाओं पर केंद्रित हो गया है। हमारे समाज की यही खासियत है कि हम परंपराओं में नवीनता का समावेश लगातार करते रहते हैं। कभी करवा चैथ पत्नी के, पति के लिए समर्पण का प्रतीक हुआ करता था, लेकिन आज यह पति-पत्नी के बीच के सामंजस्य और रिश्ते की खुशबू में महक रहा है। आधुनिक होते दौर में हमने अपनी परंपरा तो नहीं छोड़ी है, अब इसमें ज्यादा संवेदनशीलता, समर्पण और प्रेम की अभिव्यक्ति दिखाई देती है। दोनों के बीच अहसास का घेरा मजबूत होता है, जो रिश्तों को सुरक्षित करता है। इस नई जेनरेशन की महिलाएं भी अपने सुहाग के प्रति पहले जितनी ही प्रतिबद्ध हैं, लेकिन उनके सुहाग यानी पतिदेव की भावनाओं में जबरदस्त परिवर्तन आया है। महानगर में कई जोड़े ऐसे हैं, जहां
पति भी अपनी पत्नी के साथ करवा चैथ का व्रत करते हैं और उसके बाद रात को किसी रेस्तरां में रोमांटिक डिनर के लिए जाते हैं। सुहाग की कुशल कामना का पर्व करवा चैथ तो आज भी कायम है, लेकिन बदले स्वरूप के साथ। यानी एक वर्ग ऐसा भी है, जो करवा चैथ पर करवा, परंपरागत पकवान और सात भाइयों की बहन की कहानी से दूर होते हुए भी उसे बस भावनाओं के साथ मना रहा है।

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