Thursday, May 17, 2012
कार्टून पर हाय-हल्ला
कार्टून अगर हमारे देश का सच उजागर करता है तो इसमें गलत क्या है । उससे डरना क्या ...उससे घबराना क्या...और सही मायनों में तो कार्टून हमारे समाज का आइना है और आइना तो वही दिखएगा जो उसके समाने होगा ...हमारे देश की संसद इस बात को लेकर परेशान हैरान है कि एनसीआरटी की किताब में एक कार्टून किसने छाप दिया और इसे आखिर हटाया कैसे जाए ...लेकिन हमारी संसद में बैठे देश को चलाने वाले ये सफेदपोश नेताओं ने क्या इस बात कि कभी चिंता की है कि सोने की चिड़िया कहा जाने वाला ये देश कार्टून बनता जा रहा है। शायद मुझ जैसे पत्रकार को ये बात कहने में अटपटी जरूर लग रही है कि हमारा देश कार्टून बनता जा रहा है लेकिन क्या करूं आदत से मजबूर हूँ झूठ बोला नहीं जाता ।
बीते कुछ दिनों से संसद में एक मुददा गर्माया हुआ है जो कि ताल्लुक रखता है एक कार्टून से । ये कार्टून तो सिर्फ एक कर्टून है लेकिन हमारे माननीय नेताओं ने इसे कुछ ज्यादा ही दिल से लगा लिया । सन् 1949 में कार्टूनिस्ट शंकर पिल्लई द्वारा बनाए गए एक कार्टून जिसमें हमारे संविधान निर्माता बाबा भीमराव अम्बेडकर संविधान पर बैठे हुए है और उनके पीछे हमारे देश के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू खड़े है और इन दोनों ही महानविभूतियों के हाथों में चाबुक है जिसमें वो संविधान निर्माण में तेजी लाने का निर्देश दे रहे हैं। शायद इस बात का बुरा हमारे नेताओं को अब यानी लगभग 60 साल बाद लगा है। हाल ही में संसद के कुछ विद्वान नेताओं ने इस कार्टून पर अपना विरोध दर्ज कराया और संसद के दोनों सदनो में जमकर हंगामा किया तो कई ने मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल का इस्तीफा भी मांगने में तनिक भी देर न की। आज विवाद का केन्द्र बना ये कार्टून 1949 को विश्व प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट शंकर पिल्लई ने बनाया था । शंकर पिल्लई प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के बहुत करीबी दोस्त मानें जाते थे । इस कार्टून को बने लगभग 63 साल हो गए है लेकिन शायद हमारे नेताओं को देर से जागने और चीजों को देर समझने की आदत हो गई है तभी तो ये कार्टून इतनें दिनों बाद इन लोगों को खटकने लगा है और नेतागणों को यो कार्टून दलित विरोधी दिखाई दे रहा है यानी इस कार्टून से अम्बेडकर और दलितों का अपमान हो रहा है या इससे लोगों की भावनाओं को ठेस पहुँच रही है क्योंकि कार्टून में दलित अधिकारों और उनके लिए लड़ने वाले लोग शामिल है। अब ये तो मानना होगा ही कि हमारे देश के नेता कितने विद्वान है कि उनको इस कार्टून को समझने और अपने ढंग से उसकी व्याख्या करने में 60 साल से ज्यादा लग गए । खैर मेरी समख के घोड़े जहॉ तक दौड़ते हैं उसके बाद मेरे पास कुछ कहने को नहीं बचता ।...
लेकिन अगर देश की दशा और दिशा के दूसरे पहलू की परतों को टटोलने की कोशिश करे तो देश का दर्पण कुछ और ही बतलाने को मजबूर हैं।...
उत्तर प्रदेश में लोगों के खून पसीनें की गाढी कमाई को अपने स्वार्थवश मूर्तियों में तब्दील कर देना और उसको दलित र्स्मतिचिहन...सम्मान और उनकी भावनओं का सूचक बता देने पर किसी की भावनाए आहत नहीं होती । हमारे देश के नेता अपने स्वार्थ के लिए कितने ही अरबों का घोटाला कर दें लेकिन फिर भी वो संसद में विराजमान रहते है। अपनी सरकार चलाने और बचाने के लिए अपनी ही बिरादरी के लोगों की खरीद फरोख्त करते है और संसद के पटल पर हरे गुलाबी नोटो की गड्डियो को लहराते है तब शायद इनको इसमें देश या देश की जनता का अपमान नजर नहीं आता । लेकिन एक कार्टून ने इन नेताओं के आत्म सम्मान को इतना ठेस पहुँचा दिया कि पूरी संसद ही हिल गई और इसे हटाने की मांग पर तुल गई। खैर जो भी हो इस मुददे को ज्यादा तूल न देते हुए मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल व्यक्तिगत तौर पे तो नहीं लेकिन माफी मांग ली। वहीं सदन के नेता प्रणव मुखर्जी ने कहा है कि सभी आपत्तिजनक साम्रगी और जरूरी हुआ तो पूरी किताब को ही हटा लिया जाएगा और इस संबद्ध में सभी जरूरी कदम उठाए जाएगें । बहरहाल भले ही राजनेता इन कार्टूनों को आपत्तिजनक और नेताओं का मजाक उड़ाने वाला बता रहे हो लेकिन कार्टूनों का उद्देश्य महज हंसना गुदगुदाना नहीं है इनका अर्थ उससे कही ज्यादा है जितना उपरी तौर पर नजर आता है।
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