Pages

Tuesday, November 23, 2010

आज मुझसे किसी ने पुछा की तुम्हारी प्रेम की परिभाषा क्या है? आप किस तरह से प्रेम को परिभाषित करते हो? में थोडा सा जरूर घबराया की हम दिन में दस बार प्यार प्यार करतें हैं लेकिन जब सोंचना शुरू किया तो मुझे लगा की मुझे पता ही नहीं है की प्यार है क्या ?तो शायद इसका जवाब मेरे पास भी न था प्यार होता क्या है इसका एहसास मुझे दूर दूर तक न था मई अपने दोस्तों और सहकर्मियों के प्यार का तरीका रोज देखता और परखता था समझने की कोशिश करता था की प्यार है क्या लेकिन में उनका प्यार समझ नहीं पाया मुझे लगा की मेरे प्यार की परिभाषा कुछ और होगी बड़ी कोशिश करने के बाद अब समझ में आने लगा है की मैंने कभी इसकी गहराई में जाकर देखा ही नहीं की प्यार है क्या? की क्या इस बात का जवाब मेरे पास है की नहीं अब जब मेरा मन मेरे शारीर के हर हिस्से से अलग अलग जाकर पूछता है की आखिर प्यार है क्या ये कैसे होता है? तब बड़ी विनम्रता से जवाब आया..........
प्रेम में डुबो वहीँ से प्यार की आयते उठेगी और वेड के स्वर!वही मीरा जागेगी वहीँ शांडिल्य के सूत्र सत्य होंगे!

की प्रेम तुमने जाना ही नहीं !वो तो सिर्फ आकर्षण होगा दिखावा होगा! क्योंकी प्रेम तो जिससे हो जाए उसी में प्रेम दिखाई पड़ता हैअ यही प्यार का प्रमाद है अगर न दिखाई दे तो प्रेम नहीं कुछ और है! प्रेम नहीं आकर्षण या कामना होगी प्रेम नहीं! अगर मई ये कहूँ की पत्थर से प्रेम हो जाए तो पत्थर मुर्ति बन जाती है! आदमी से प्रेम हो जाए तो उसी में परमात्मा की छवि दिखाई पड़ने लगती है!

आज कल की जिंदगी में प्रेम का मतलब सिर्फ एक लड़के और लड़की के बीच सम्बन्ध ही रह गया है !क्या प्रेम माँ बाप भाई बहेन से नहीं हो सकता है किसी माँ से पूछो की जब उसका बच्चा अपने घर के आँगन में चलने की कोशिश करता है और बार बार गिरता है तो उसमे कृष्ण कन्हईया दिखाई देते हैं कोई भी माँ देख सकती है बस बच्चे से प्रेम होना चाहिए !
जब तुम किसी के प्रेम में पड़ोगे तो तुम्हे वहां से प्रेम की पहली आहट मिलेगी अस्तित्वा की ! रहस्य की पहली खबर मिलेगी की जीवन सिर्फ ऊपर ऊपर नहीं है जो ऊपर से दिखाई देता है! उस पर समाप्त नहीं है जीवन की और भी गहराइयाँ है प्रेमी को अनकही बातें भी सुनाई देने लगती हैं उसे दूसरे की धड़कने सुनाई देना शुरू होती हैं! दो प्रेमी दो शरीर का मिलन नहीं है वहां सिर्फ आकर्षण है प्रेम नाम मात्र भी नहीं है! जहाँ दो मन मिलतें हैं वहां प्रेम की शरुआत होती है और जहाँ दो आत्माएं मिल जाती हैं वहीँ प्रेम पूर्ण हो जाता है !!!!

5 comments:

  1. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति|

    ReplyDelete
  2. सच है हर किसी की अपनी अपनी परिभाषा होती है प्यार की.

    यदि आपको ब्लॉग्गिंग में कोई समस्या होती है तो हमारे फोरम पर लिखें आपको हर समस्या का समाधान मिलेगा

    ब्लोगर फोरम

    ReplyDelete
  3. ब्‍लागजगत पर आपका स्‍वागत है ।
    bahut sunder paribhasha ki koshish hai.

    ReplyDelete
  4. shuruaati paNktiyaaN yathaarthparak lagiN to baaqi paNktiyaa kuchh-kuchh osho se prabhaavit.

    ReplyDelete
  5. लेखन के मार्फ़त नव सृजन के लिये बढ़ाई और शुभकामनाएँ!
    -----------------------------------------
    आलेख-"संगठित जनता की एकजुट ताकत
    के आगे झुकना सत्ता की मजबूरी!"
    का अंश.........."या तो हम अत्याचारियों के जुल्म और मनमानी को सहते रहें या समाज के सभी अच्छे, सच्चे, देशभक्त, ईमानदार और न्यायप्रिय-सरकारी कर्मचारी, अफसर तथा आम लोग एकजुट होकर एक-दूसरे की ढाल बन जायें।"
    पूरा पढ़ने के लिए :-
    http://baasvoice.blogspot.com/2010/11/blog-post_29.html

    ReplyDelete